आप में से कई ब्लोगर संसद चालीसा को मेरे पुत्र नवीन त्यागी के ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं। किंतु अब ये रचना मेरे ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।आप सभी का सहयोग मेरा उत्साह बढायेगा।
संसद से सीधा प्रसारण-संसद चालीसा
देशवासियों सुनो झलकियाँ मै तुमको दिखलाता।
राष्ट्र- अस्मिता के स्थल से सीधे ही बतियाता।
चारदीवारी की खिड़की सब लो मै खोल रहा हूँ।
सुनो देश के बन्दों मै संसद से बोल रहा हूँ।१।
रंगमंच संसद है नेता अभिनेता बने हुए हैं।
जन- सेवा अभिनय के रंग में सारे सने हुए हैं।
पॉँच वर्ष तक इस नाटक का होगा अभिनय जारी।
किस तरह लोग वोटों में बदलें होगी अब तैयारी।२।
चुनाव छेत्र में गाली जिनको मुहं भर ये देते थे।
जनता से जिनको सदा सजग ये रहने को कहते थे।
क्या-क्या तिकड़म करके सबने सांसद- पद जीते है।
बाँट परस्पर अब सत्ता का मिलकर रस पीते हैं।३।
जो धर्म आज तक मानवता का आया पाठ पढाता।
सर्वधर्म-समभाव-प्रेम से हर पल जिसका नाता।
वोटों की वृद्धि से कुछ न सरोकार उसका है।
इसीलिए संसद में होता तिरस्कार उसका है।४।
दो पक्षो के बीच राष्ट्र की धज्जी उड़ती जाती।
राष्ट्र-अस्मिता संसद में है खड़ी-खड़ी सिस्काती।
पल-पल, क्षन-क्षन उसका ही तो यहाँ मरण होता है।
द्रुपद सुता का बार-बार यहाँ चीर-हरण होता है।५।
आतंकवाद और छदम युद्ध का है जो पालनहारा।
साझे में आतंकवाद का होगा अब निबटारा।
आतंक मिटाने का उसके संग समझोता करती है।
चोरों से मिलकर चोर पकड़ने का सौदा करती है।६।
विषय राष्ट्र के एक वर्ग पर यहाँ ठिठक जाते हैं।
राष्ट्र-प्रेम के सारे मानक यहाँ छिटक जाते हैं।
अर्थ-बजट की द्रष्टि जाकर एक जगह टिकती है।
एक वर्ग की मनुहारों पर संसद यह बिकती है।7।
अफजल के बदले मे जो है वोट डालने जाते।
सत्ता की नजरों में वे ही राष्ट्र भक्त कहलाते।
आज देश की गर्दन पर जो फेर रहे हैं आरे।
उनकी वोटो से विजयी नही क्या संसद के हत्यारे।8।
सर्वोच्च अदालत ने फाँसी का जिसको दंड दिया है।
संसद ने तो उसको ही वोटो में बदल लिया है।
इसलिए आज यह देश जिसे है अपराधी ठहराता।
वही जेल मे आज बैठकर बिरयानी है खाता।9।
मौत बांटते जिसको सबने टी० वी० पर पहचाना।
धुआं उगलती बंदूकों को दुनिया भर ने जाना।
सत्ता का सब खेल समझ वह हत्त्यारा गदगद है।
हत्या का प्रमाण ढूंढती अभी तलक संसद है।10।
यहमाइक-कुर्सी फैंक वीरता रोज-रोज दिखलाती।
पर शत्रु की घुड़की पर है हाथ मसल रह जाती।
जाने क्या-क्या कर जुगाड़ यहाँ कायरता घुस आई।
फ़िर काग -मंडली मधुर सुरों का पुरुष्कार है लायी।११।
जब एक पंथ से आतंकियों की खेप पकड़ में आती।
वोट खिसकती सोच-सोच यह संसद घबरा जाती।
तब धर्म दूसरे पर भी आतंकी का ठप्पा यह धरती है।
यूँ लोकतंत्र में सैक्यूलारती की रक्षा यह करती है। १२।
लोकतंत्र में युवाओं को हिस्सा जब देने को ।
चिल्लाती जनता है इनको भी भाग वहां लेने को।
बड़ी शान से जन इच्छा का मन यह रख देती है।
बेटों को सब तंत्र सोंप जनतंत्र बचा लेती है।१३
घोटाले अरबों -खरबों के यहाँ प्राय होते हैं।
चर्चे उनके चोपालों पर सुबह -सायं होते हैं।
अधिक शोर मचने पर सोती संसद यह जगती है।
आयोग बिठाकर दौलत को चुपचाप हजम करती है।१४
जो इसी धरा पर खाते-पीते साँस हवा में लेते।
माता का सम्मान नही पर इस धरती को देते।
उनके ही पीछे राष्ट्र सौंपने संसद भाग रही है।
एक मुस्त बदले में केवल बोटें मांग रही है । १५
देश-द्रोह में लगे रहें या करे देश बर्बादी ।
दे रही छूट यह हर उस दल को है पूरी आजादी।
बस एक शर्त का अनुपालन ही उनकी जिम्मेदारी।
सिंहासन का मौन- समर्थन करे हमेशा जारी ।१६
सरकार पाक की जब जी चाहे घुड़की दे देती है।
कान दबाकर संसद उसकी सब-कुछ सुन लेती है।
बोटो के भयवश न विरुद्ध कुछ साहस है यह करती।
एक वर्ग को पाक-समर्थक संसद स्वयम समझती। १७
पहले तो शत्रु इसी धरा पर हमले ख़ुद करवाता।
फ़िर हमलों के इससे ही प्रमाण स्वयं मंगवाता।
वह दो कोडी का देश फैकता रद्दी में है उनको।
यह कायर संसद युद्ध नही,प्रमाण भेजती उसको।१८
जब विस्फोटों की गूँज भीड़ के बीचों-बीच उभरती।
दस-पॉँच जनों के तन से जब ,शोणित की धार उबलती।
लाशों के चेहरों में वोटों की गणना को जुटती है।
यूँ बार-बार सत्ता पाने के सपने यह बुनती है। १९
सोमवार, 9 नवंबर 2009
शनिवार, 31 अक्तूबर 2009
मै राष्ट्र यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया.
अपना शौर्य तेज भुला यह देश हुआ क्षत-क्षत है।
यह धरा आज अपने ही मानस -पुत्रों से आहत है।
अब मात्र उबलता लहू समय का मूल्य चुका सकता है।
तब एक अकेला भारत जग का शीश झुका सकता है।
एक किरण ही खाती सारे अंधकार के दल को।
एक सिंह कर देता निर्बल पशुओं के सब बल को।
एक शून्य जुड़कर संख्या को लाख बना देता है।
अंगार एक ही सारे वन को राख बना देता है।
मै आया हूँ गीत सुनाने नही राष्ट्र-पीड़ा के।
मै केवल वह आग लहू में आज नापने आया
मै राष्ट्र-यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया ।।१
नही महकती गंध केशरी कश्मीरी उपवन में।
बारूदों की गंध फैलती जाती है आँगन में।
मलयाचल की वायु में है गंध विषैली तिरती।
सम्पूर्ण राष्ट्र के परिवेश पर लेख विषैले लिखती।
स्वेत बर्फ की चादर गिरी के तन पर आग बनी है।
आज धरा की हरियाली की पीड़ा हुई घनी है।
पर सत्ता के मद में अंधे धरती के घावों से।
अंजान बने फिरते है बढ़ते ज्वाला के लावों से।
शक्ति के नव बीज खोंजता इसीलिए ही अब मैं।
मै महाकाल का मन्त्र फूंकता तुम्हे साधने आया
मै राष्ट्र यज्य के लिए ....................................२
उठ रहा आज जो भीषण -रव यह एक जेहादी स्वर है।
एक दिशा से नही घेरता चारो और समर है।
इस जिहाद की नही कोई भी अन्तिम कही कड़ी है ।
सहस्त्र वर्ष से अधिक राष्ट्र पर इसकी नजर गढ़ी है।
निरपेक्ष मौन है किंतु सत्ता इसको खेल समझती।
अंतहीन इस रण को बस उन्माद समझ कर हंसती।
उदारवाद के बहकावों के शब्द जाल में फंसकर।
नही देखती इतिहासों के काले प्रष्ठ पलटकर।
इतिहासों की उसी कालिमा से आवृत प्रष्ठों में ।
उज्जवल इतिवृत के पन्नों को मै आज बाँचने आया
मै राष्ट्र यज्य के लिए .........................................३
इतिवृत्त के प्रष्ठ सुनहरे जो सत्ता ने फाड़ दिए हैं।
आतंकवाद के पैरों में ही गहरे गाड़ दिए हैं।
अपने जीवन-मूल्य बेच सत्ता का मोल किया है।
सत्ता के पलडे में सारा भारत तोल दिया है।
ओट अहिंसा की ले कायरता का वरण किया है।
भूतकाल के भारत के वैभव का हरण किया है।
मत पूछो क्या-क्या पाप किए है सत्ता को वरने को।
आतंकवाद सोपान बनाली सत्ता पर चढ़ने को।
इस अंतहीन आतंकवाद से आरपार करने को ।
किस -किस की नस में उबल रहा वह लहू जाँचने आया।
मै राष्ट्र-यज्य के लिए .................................................४
सैकुलरिवाद से राष्ट्रवाद का है उपहास उड़ाकर।
अल्पसंख्यकता को राष्ट्रवाद का नव परियाय बनाकर।
सैकुलरती को अल्पसंख्यकता का नूतन अर्थ दिया है।
राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रवाद सम-अर्थी मान लिया है।
राष्ट्र -अस्मिता भी इनकी इन सोंचो से हारी है।
आतंकवाद की तुष्टि तो अब संसद पर भारी है।
नही राष्ट्र के भक्त इन्हे आतंकवाद प्यारा है।
करनी से इनके आतंक नही हर बार देश हारा है।
आतंकवाद का तिनका-तिनका जड़ -सहित नष्ट करने को।
मै राष्ट्र- प्रेम का तक्र तुम्हारे बीच बाँटने आया॥
मै राष्ट्र-यज्य के लिए ............................................५
आलोक राष्ट्र का पश्चिम की बदली में अटक गया है।
अन्धकार की राह पकड़कर सूरज भटक गया है।
सहना कोई अन्याय यह कायरता का सूचक है।
यह किसी राष्ट्र की जनशक्ति की जड़ता का सूचक है।
मात्र अहिंसा तो ऋषियों का आभूषण होती है।
par राज मार्ग पर कायरता का आकर्षण होती है।
हिंसा के प्रतिशोधों को तो युद्ध किए जाते है।
प्रस्ताव अमन के वीरों द्वारा नही दिए जाते है।
इस कायरता के संस्कार है रोपे जिसने मन में।
वह भावः अहिंसा के मन से मै आज काटने आया।
मै राष्ट्र यज्य के लिए ........................................६
युद्धों से भयभीत देश जो युद्धों से बचता है।
युद्ध स्वं उसके द्वारों पर दस्तक जा देता है।
इसलिए शत्रु की चालों में न अपने को फसने दो।
वीरों की छाती पर अब तो बस शास्त्रों को सजने दो।
यदि समय पर चूके सब कुछ राष्ट्र यह खो देगा।
फ़िर सिंहासन की एक भूल का दंड देश भोगेगा।
राष्ट्र खड़ा है पीछे तेरे रणभेरी बजने दो।
अब जनशक्ति को अश्वमेध की तैयारी करने दो।
इस महायज्य की पूत-अनल में समिधा बन जाने को।
मै धर्म-जाति के हर गह्वर को आज पाटने आया॥
मै राष्ट्र-यज्य के लिए ............................................७
यह धरा आज अपने ही मानस -पुत्रों से आहत है।
अब मात्र उबलता लहू समय का मूल्य चुका सकता है।
तब एक अकेला भारत जग का शीश झुका सकता है।
एक किरण ही खाती सारे अंधकार के दल को।
एक सिंह कर देता निर्बल पशुओं के सब बल को।
एक शून्य जुड़कर संख्या को लाख बना देता है।
अंगार एक ही सारे वन को राख बना देता है।
मै आया हूँ गीत सुनाने नही राष्ट्र-पीड़ा के।
मै केवल वह आग लहू में आज नापने आया
मै राष्ट्र-यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया ।।१
नही महकती गंध केशरी कश्मीरी उपवन में।
बारूदों की गंध फैलती जाती है आँगन में।
मलयाचल की वायु में है गंध विषैली तिरती।
सम्पूर्ण राष्ट्र के परिवेश पर लेख विषैले लिखती।
स्वेत बर्फ की चादर गिरी के तन पर आग बनी है।
आज धरा की हरियाली की पीड़ा हुई घनी है।
पर सत्ता के मद में अंधे धरती के घावों से।
अंजान बने फिरते है बढ़ते ज्वाला के लावों से।
शक्ति के नव बीज खोंजता इसीलिए ही अब मैं।
मै महाकाल का मन्त्र फूंकता तुम्हे साधने आया
मै राष्ट्र यज्य के लिए ....................................२
उठ रहा आज जो भीषण -रव यह एक जेहादी स्वर है।
एक दिशा से नही घेरता चारो और समर है।
इस जिहाद की नही कोई भी अन्तिम कही कड़ी है ।
सहस्त्र वर्ष से अधिक राष्ट्र पर इसकी नजर गढ़ी है।
निरपेक्ष मौन है किंतु सत्ता इसको खेल समझती।
अंतहीन इस रण को बस उन्माद समझ कर हंसती।
उदारवाद के बहकावों के शब्द जाल में फंसकर।
नही देखती इतिहासों के काले प्रष्ठ पलटकर।
इतिहासों की उसी कालिमा से आवृत प्रष्ठों में ।
उज्जवल इतिवृत के पन्नों को मै आज बाँचने आया
मै राष्ट्र यज्य के लिए .........................................३
इतिवृत्त के प्रष्ठ सुनहरे जो सत्ता ने फाड़ दिए हैं।
आतंकवाद के पैरों में ही गहरे गाड़ दिए हैं।
अपने जीवन-मूल्य बेच सत्ता का मोल किया है।
सत्ता के पलडे में सारा भारत तोल दिया है।
ओट अहिंसा की ले कायरता का वरण किया है।
भूतकाल के भारत के वैभव का हरण किया है।
मत पूछो क्या-क्या पाप किए है सत्ता को वरने को।
आतंकवाद सोपान बनाली सत्ता पर चढ़ने को।
इस अंतहीन आतंकवाद से आरपार करने को ।
किस -किस की नस में उबल रहा वह लहू जाँचने आया।
मै राष्ट्र-यज्य के लिए .................................................४
सैकुलरिवाद से राष्ट्रवाद का है उपहास उड़ाकर।
अल्पसंख्यकता को राष्ट्रवाद का नव परियाय बनाकर।
सैकुलरती को अल्पसंख्यकता का नूतन अर्थ दिया है।
राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रवाद सम-अर्थी मान लिया है।
राष्ट्र -अस्मिता भी इनकी इन सोंचो से हारी है।
आतंकवाद की तुष्टि तो अब संसद पर भारी है।
नही राष्ट्र के भक्त इन्हे आतंकवाद प्यारा है।
करनी से इनके आतंक नही हर बार देश हारा है।
आतंकवाद का तिनका-तिनका जड़ -सहित नष्ट करने को।
मै राष्ट्र- प्रेम का तक्र तुम्हारे बीच बाँटने आया॥
मै राष्ट्र-यज्य के लिए ............................................५
आलोक राष्ट्र का पश्चिम की बदली में अटक गया है।
अन्धकार की राह पकड़कर सूरज भटक गया है।
सहना कोई अन्याय यह कायरता का सूचक है।
यह किसी राष्ट्र की जनशक्ति की जड़ता का सूचक है।
मात्र अहिंसा तो ऋषियों का आभूषण होती है।
par राज मार्ग पर कायरता का आकर्षण होती है।
हिंसा के प्रतिशोधों को तो युद्ध किए जाते है।
प्रस्ताव अमन के वीरों द्वारा नही दिए जाते है।
इस कायरता के संस्कार है रोपे जिसने मन में।
वह भावः अहिंसा के मन से मै आज काटने आया।
मै राष्ट्र यज्य के लिए ........................................६
युद्धों से भयभीत देश जो युद्धों से बचता है।
युद्ध स्वं उसके द्वारों पर दस्तक जा देता है।
इसलिए शत्रु की चालों में न अपने को फसने दो।
वीरों की छाती पर अब तो बस शास्त्रों को सजने दो।
यदि समय पर चूके सब कुछ राष्ट्र यह खो देगा।
फ़िर सिंहासन की एक भूल का दंड देश भोगेगा।
राष्ट्र खड़ा है पीछे तेरे रणभेरी बजने दो।
अब जनशक्ति को अश्वमेध की तैयारी करने दो।
इस महायज्य की पूत-अनल में समिधा बन जाने को।
मै धर्म-जाति के हर गह्वर को आज पाटने आया॥
मै राष्ट्र-यज्य के लिए ............................................७
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